लोहाघाट। चंपावत जिले में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सशक्त माध्यम बना दुग्ध उत्पादन का कार्यक्रम पशुओं में फैले लंपी वायरस की बीमारी से किसानों की तो कमर ही तोड़ कर रख दी है। गांव के अधिकांश लोग दूध का उत्पादन कर अपनी आजीविका चलाते आ रहे थे। मार्च माह से एकाएक दुधारू पशुओं का मरना शुरू हुआ जो आज तक कुछ हद तक शांत तो हो पाया है। लेकिन इसने इतने गहरे जख्म छोड़ दिए हैं, जिससे पशुपालक संभल नहीं पा रहे हैं। इस महामारी की चपेट में अभी तक 378 दुधारू पशुओं की मौत होने की पुष्टि दुग्ध संघ के द्वारा किए गए सर्वेक्षण से हो चुकी है। पशुपालन विभाग का सर्वेक्षण अभी चल रहा है। यह बात अलग है कि महामारी को काबू करने में पशुपालन विभाग के पसीने निकल गए। प्रभारी सीवीओ डा. डीके चंद का कहना है कि महामारी का जख्म इतना गहरा है कि अभी भी बीमार पशुओं का लगातार उपचार किया जा रहा है। सबसे अच्छी बात यह रही कि सभी विभागीय कर्मचारियों ने इस भावना से जी जान लगाकर कार्य किया कि पशु को लेकर ही उनका अस्तित्व है।
सैकड़ों गायों के मरने से दूध के उत्पादन में काफी गिरावट आ गई है। जो पशु बीमार हैं, उनका दूध 50 से 75 फ़ीसदी तक कम हो गया है। तमाम गायों के तो थन तक झड़ गए हैं। किसान यूनियन के जिला अध्यक्ष नवीन करायत का कहना है कि भले ही पशुपालन विभाग के लोग बीमार गायों को मौत के मुंह से खींच लाने में सफल तो हुए हैं, लेकिन बीमार गायों का दूध घटकर 25 फ़ीसदी ही रह गया है। इस स्थित को हर परिवार झेल रहा है। बीमार दुधारू पशुओं के पूर्व स्थिति में आने में अभी लंबा समय लगने वाला है। हालांकि सीएम धामी की ओर से वायरस से हुए नुकसान की भरपाई करने का आश्वासन दिए जाने से मृतक पशुओं के मालिकों में कुछ जान आई है। लेकिन मृतक पशुओं का सर्वेक्षण पूरा ना होने से क्षतिपूर्ति के लिए कदम आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। मृतक पशुओं के साथ बीमारी से ग्रसित पशुओं के स्वामियों को भी राहत देने की जरूरत है, क्योंकि उन्होंने इतना दूध कम कर दिया है कि उन्हें सामान्य होने में अभी काफी लंबा समय लगने वाला है।