लोहाघाट।चंपावत जिले की भौगोलिक परिस्थितियां मौनपालन कार्यक्रम के लिए काफी अनुकूल है,जहां मौन पालन को स्थाई रोजगार का साधन बनाया जा सकता है।जिले में कुछ लोग बहुत कम रासायनिक खादो व कीटनाशक रसायनों का प्रयोग करते हैं। जिससे यहां पैदा होने वाला शहद ऑर्गेनिक होगा जिसकी बाजार में अच्छी कीमत मिलती है। मौन पालन ऐसा व्यवसाय है जिसमें कम लागत, कम मेहनत एवं लाभ अधिक है। हालांकि यहां के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी ढाड़ो में मौनपालन का कार्य किया जाता है। लेकिन मौन बक्सों की तुलना में इसमें 25 फिसदी‌। का ही उत्पादन हो पाता है उस पर भी मौन बक्सों को काफी नुकसान पहुंचता है। इस कार्यक्रम को आधुनिक मौन पालन की तकनीक से शुरू किए जाने पर एक छोटे मौन बक्से से वर्ष में दो बार शहद की फसल ली जा सकती है।जिसमें एक बक्से में एक बार आठ किलोग्राम तक शहद निकलता है।मौनपालन के लिए बसंत पंचमी के बाद का समय काफी अनुकूल माना जाता है। फरवरी से मार्च माह तक मौन बक्सों मेंपरिवारों का विभाजन यानी वकछुट होने लगता है।जिससे नई कालोनियां विकसित हो जाती है जिन्हें पकड़ने के लिए मौन बक्से तैयार रहने चाहिए।इससे पूर्व मौनपालन के लिए प्रारंभिक जानकारी का प्रशिक्षण लिया जाना जरूरी है।बसंत के बाद विभिन्न प्रकार के फल फूलों में फ्लावरिंग होना शुरू हो जाता है। यदि उस वक्त मौनो द्वारा पोलिनेशन किया जाए तो फल अधिक दिनों तक पेड़ में टिकता हैं। फल का आकार सुडौल व बड़ा भी होता है। यहां के काश्तकार चप्पन कद्दू को व्यापारिक दृष्टि से अधिक लगाते हैं ।कृषि विज्ञान केंद्र की उद्यान वैज्ञानिक डॉ रजनी पन्त का कहना है। मौन‌पालन‌,सब्जी तथा फलोत्पादन का ऐसा समागम है। जिसमें उत्पादन में तीस फ़ीसदी अधिक उत्पादन ज्यादा होता है।

              उद्यान विशेषज्ञ एमएस रावत का कहना है कि बुराश, च्यूरा, काफल फल्टा,भीमल,सूरजमुखी,तोरिया,सरसों, तिल, लीची,नींबू,केला, माल्टा,संतरा,असालु,किल्मोड़ा में आने वाले फलो में मधुमक्खियों को पराग व मकरंद दोनों मिल जाते हैं। जबकि मक्का, अमरुद,धनिया, ककड़ी ,लौकी,आदि मे आने वाले फूलो में केवल पराग पाया जाता है। चंपावत जिले की लधिया, रतिया,पनार,सरयू,महाकाली लोहावती, क्वैराली, शेरी आदि तमाम नदी घाटी वाले क्षेत्र मौन पालन के लिए सर्वथा  उपयुक्त माने जाते हैं। यहां जाडों में भी च्युरा व सरसों फुलता है जो मधुमक्खियों के लिए अच्छा आहार बन जाता है।मौन पालन विशेषज्ञ पद्मावत पांडे का कहना है कि यदि इच्छाशक्ति से ईमानदार प्रयास किए जाएं तो अकेले चंपावत जिले से कुंतलो के हिसाब से जैविक शहद पैदा किया जा सकता है। जो चंपावत जिले की सौगात बनाया जा सकता है। वैसे इस ऑर्गेनिक शहद की बिक्री के लिए हमारे पास मां पूर्णागिरी धाम में तीन माह तक मेला चलता है। तथा मीठे-रीठे चमत्कार के लिए प्रसिद्ध गुरुद्वारा श्रीरीठासाहिब ऐसे स्थान हैं जहां वर्षभर देश विदेश के तीर्थ यात्रियों की आवाजाही बनी रहती है। श्रद्धालुओं को शुद्ध व ऑर्गेनिक शहद मिल जाए तो वह दोगुनी कीमत देकर धन्यवाद कहते हुए जाएंगे।


मौनपालन कार्यक्रम को रोजगार परक बनाने के लिए पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के निदेशक डॉ अनिल शर्मा विशेष प्रयत्नशील हैं उनका कहना है कि वे केवीके लोहाघाट के वैज्ञानिकों को पंतनगर में मौनपालन का प्रशिक्षण दिलाएंगे। यदि वैज्ञानिकों के साथ कृषि एवं उद्यान विभाग के कुछ उत्साही फील्ड कर्मियों को भी इनके साथ प्रशिक्षण दिलाया जाता है तो यह कार्यक्रम और प्रभावी रूप से संचालित किया जा सकता है। हालांकि सीएम धामी ने जिले में इस कार्यक्रम को अपने ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल किया हुआ है।जिलाधिकारी नरेंद्र सिंह भंडारी भी इस कार्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए जी जान से प्रयास करने में जुटे हुए हैं

By Jeewan Bisht

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