चंपावत। पहले सुखा उसके बाद लगातार वर्षा ने तो किसानों को कहीं का नहीं रख दिया है। सही मायनों में देखा जाए तो किसानों के पास आजीविका चलाने के लिए तो खेत ही एकमात्र माध्यम हुआ करता है। जिसके जरिए वह अपने परिवार का पालन पोषण, बच्चों की पढ़ाई, शादी विवाह आदि सभी पारिवारिक संस्कार सब इसी के बल पर करते आ रहे हैं। जब मौसम ही दगा दे जाए और किसान की हाड़ तोड़ मेहनत बर्बाद हो जाए तो वह बिचारे हाथ मल कर अपनी किस्मत को कोसने लगते हैं। जिले में बैमौसमी सब्जियों का व्यापक उत्पादन होता, आग उगलने वाली गर्मियों में पानी ढो ढो कर किसानों ने अपनी सब्जी के पौधों को जिंदा रखा हुआ था। उसके बाद हुई भारी वर्षा से पौधे टूटने के साथ उनमें गलन पैदा हो गई है। भारतीय किसान यूनियन के जिलाध्यक्ष एवं प्रमुख सब्जी उत्पादक नवीन करायत के अनुसार दुर्भाग्य किसानों का पीछा नहीं छोड़ रहा है। बैमोसमी सब्जियों, आलू आदि का कारोबार चौपट होने से किसानों की भविष्य की आश समाप्त हो गई है। उन्होंने मुख्यमंत्री व जिला प्रशासन को पत्र लिखकर किसानों को मुआवजा देने की मांग की है। श्री करायत का कहना है कि यहां के किसानों का एकमात्र जरिया ही खेती है जब वही बर्बाद हो गई तो उनकी मन: स्थिति को स्वयं समझा जा सकता है ।

कृषि विज्ञान केंद्र लोहाघाट की उद्यान वैज्ञानिक डॉ रजनी पंत का कहना है कि पहले तापमान 33 – 34 डिग्री तक पहुंचाने के बाद इसका 19 डिग्री तक लुढ़कना यानी मौसमी मार को सब्जी पौध नहीं झेल पाए। ऊपर से हुई भारी वर्षा ने पौधों में गलन पैदा होने से उनमें झुलसा रोग पैदा हो गया है। जिसके लिए उन्होंने वैवस्थीन या कार्बनडाजौल के दो एमएल में एक लीटर पानी मिलाकर सब्जी पौधों की जड़ों में स्प्रे करने का सुझाव दिया। उन्होंने पौधों को जमीन से ऊपर उठकर रखने आदि सुझाव देते हुए कहा कि ऐसा प्रयास किया जाना चाहिए कि जिससे पौधों में पानी न रुकने पाए। डॉ पंत का कहना है सब्जी उत्पादकों को पूरी तरह संरक्षित खेती की ओर आगे बढ़ना चाहिए।

By Jeewan Bisht

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