
लोहाघाट। लगातार अपने खेतों व आसमान की ओर टकटकी लगाते आ रहे किसानों की उम्मीदों पर पानी फिरने से वह भविष्य के प्रति अनिश्चित होते जाते रहे हैं। पर्वतीय खेती की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि यहां की अधिकांश कृषि आसमानी वर्षा पर निर्भर है।अभी तक मौसम की पहली वर्षा भी जमकर नहीं हो पाई है ।जबकि रवि की फसल के लिए बुवाई से लेकर कटाई तक पांच बार वर्षा का होना जरूरी है।जिला कृषि एवं भूमि संरक्षण अधिकारी हिमांशु जोशी के अनुसार मौसम की बेरुखी से गेहूं व मशहूर आदि की फसलें बर्बाद होती जा रही है। यदि एक पखवाड़े के भीतर बरसात नहीं होती है तो यह फसलें पूरी तरह बर्बाद हो जाएंगी। विगत वर्ष बरसाती मौसम में भी पर्याप्त वर्षा नहीं हो पाई थी। इस वर्ष अभी तक मौसम की जो पहली वर्षा हुई उसमें तो धरती की परत गीली नहीं हो पाई । मौसमी मार का आलम यह है कि मार्च के अन्त से शुरू होने वाली गर्मी अभी से होने लगी है।
वर्षा न होने से बागवानी एवं सब्जी उत्पादन का कार्य भी प्रभावित हो गया है। उद्यान विशेषज्ञ आशीष खर्कवाल के अनुसार वैमौसमी सब्जियों आलू उत्पादन एवं फलोत्पादन ग्रामीण अर्थव्यवस्था के मजबूत आधार हैं। आलू जिले की व्यवसायिक खेती रही है। उसकी बुआई के लिए खेतों में नमी नहीं है। हालांकि वर्षा की उम्मीद पर सेव खुमानी, आडू,पुलम, लीची के व्यापक स्तर पर किसान पौध लगा रहे हैं। यदि समय से वर्षा नहीं हुई तो उनकी मेहनत में पानी फिर जाएगा। मौसम में बदलाव के साथ ही नगर एवं ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल संकट दस्तक दे चुका है ।ऐसी स्थिति में किसान कैसे लगाए गए फलदार पौधों को जिंदा रख सकेंगे यह उनके लिए बड़ी चुनौती हो गई है। बेमौसमी सब्जियों के लिए तो हर दूसरे दिन सिंचाई की जरूरत होती है।सब्जियों का प्रक्षेत्र लगातार बढ़ता जा रहा है। यदि मौसम की बेरुखी इसी प्रकार जारी रही तो यह संकट लोगों के पेट का सवाल बन जाएगा। सीडीओ आर एस रावत द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में भ्रमण कर अधिकारियों के साथ सूखे से पैदा हुई स्थिति का जायजा लिया जा रहा है।
