
लोहाघाट। चंपावत को मॉडल जिला बनाने के लिए जहां हर स्तर पर प्रयास तेजी से किए जा रहे हैं, वहीं कृषि, बागवानी, बेमौसमी सब्जी, मौन पालन, मत्स्य पालन, फूलों की खेती, दुग्ध उत्पादन, मुर्गी पालन, बकरी पालन की यहां अपार संभावनाओं को देखते हुए छमनियाचौड़ स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में पारंपरिक कृषि महाविद्यालय खोलने की मांग जोर पकड़ती जा रही है। वर्तमान में पंतनगर कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय का गढ़वाल मंडल में हिल कैपस है किंतु कुमाऊं में कहीं भी कोई ऐसा केंद्र नहीं है। लोहाघाट स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में 600 नाली भूमि सुई, पऊ एवं खैशकांडे के लोगों ने दूरगामी सोच रखते हुए अपनी गोचर पनघट की महत्वपूर्ण भूमि केवीके की स्थापना के लिए दी थी। यहां केवीके की स्थापना के बाद किसानों द्वारा आधुनिक तौर-तरीकों से खेती की जाने लगी है। बढ़ती हुई बेरोजगारी को देखते हुए यहां के पढ़े लिखे शिक्षित बेरोजगार जैविक एवं पारंपरिक खेती की ओर आगे बढ़ रहे हैं। जब चंपावत को उत्तराखंड का मॉडल जिला बनाने की बात कही जा रही है, ऐसी स्थिति में केवीके की अहम भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यहां पारंपरिक कृषि महाविद्यालय की स्थापना के बाद न केवल चंपावत का बल्कि पिथौरागढ़, बागेश्वर एवं अल्मोड़ा जिला भी कृषि के क्षेत्र में समान रूप से प्रगति करेगा।

प्रगतिशील किसान एवं ग्राम सुई खैशकांडे के युवा प्रधान भुवन चौबे का कहना है कि यदि केवीके में पारंपरिक कृषि महाविद्यालय खुलता है तो ग्राम पंचायत केंद्र से लगी अपनी गोचर पनघट की भूमि विश्वविद्यालय को देने पर विचार कर सकती है। उनका कहना है कि पारंपरिक कृषि महाविद्यालय खुलने से शिक्षित युवाओं का भविष्य सुनिश्चित होगा।

क्षेत्र के पूर्व जिला पंचायत सदस्य सचिन जोशी कहते हैं कि आज खेती के लिए आधुनिक ज्ञान और विज्ञान की आवश्यकता है। इस दिशा में यदि केवीके परिसर में पारंपरिक कृषि महाविद्यालय खोला जाता है तो इससे कुमाऊं के अन्य जिलों के किसानों की तकदीर बदलेगी तथा यहां खेती का नया युग भी शुरू होगा।
भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के जिला अध्यक्ष मदन पुजारी का कहना है कि किसानों की आजीविका का आधार ही खेती है। इसके विकास में पंतनगर विश्वविद्यालय की अहम भूमिका रही है। विश्वविद्यालय यहां पारंपरिक कृषि महाविद्यालय स्थापित करता है तो यहां के किसानों के ही नहीं,अन्य जिलों के किसानों के भी अच्छे दिन आएंगे।

शिक्षित किसान एवं सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश पांडे का कहना है कि खेती को मौजूदा सरकार बढ़ावा देने जा रही है। यहां के लोग पारंपरिक खेती करते आ रहे हैं। यदि यहां पारंपरिक कृषि विद्यालय खोलने पर विचार किया जाता है तो किसानों व उनकी पीढ़ी के लिए इससे बड़ी खुशी दूसरी नहीं हो सकती।