चंपावत। जिलाधिकारी मनीष कुमार ने आज क्या किया? कल क्या करना है? की थीम पर काम करना शुरू कर दिया है। इसके लिए पूरे तंत्र को सक्रिय एवं जवाबदेह बनाया गया है। नेपाल सीमा से लगे गांव से पलायन रोकने के लिए उनके घर में स्वरोजगार पैदा करने के हेतु 80 किलोमीटर लंबी सीमा में 11 गांव का चयन कर वहां की तस्वीर बदलने के लिए सभी विभागों के विभागाध्यक्षों की अलग-अलग टीमें लगा दी गई है। जो गांव के समग्र विकास एवं रोजगार के लिए मिलकर वहां की परिस्थितियों का अध्ययन कर जिला प्रशासन को अपनी रिपोर्ट देंगे। हालांकि इससे पूर्व भी सीमा के गांव में ऐसी बात नहीं की काफी धन तो खर्च किया गया लेकिन उसके ऐवज में धरातल में कुछ नहीं दिखाई दिया। अपने पूरे कार्यकाल में एक ईमानदार जिलाधिकारी के रूप में अपनी पहचान बना चुके तत्कालीन डीएम नवनीत पांडे एक अच्छे सीडीओ के लिए पूरे समय तरसते रहे। लेकिन नए डीएम मनीष कुमार कौन सा भाग्य लेकर आए हैं कि वह जिस सोच के साथ काम करना चाहते हैं, उन्हें पंतनगर के स्कॉलर रहे डॉ जीएस खाती जैसे नई सोच के सीडीओ मिल गए हैं। जिन्होंने अब डीएम की सोच के अनुसार गांव के रूप व स्वरूप को बदलने का ऐसा बीड़ा उठाया है। जिसमें धरती गवाह बनेगी कि मुझ पर सही धन खर्च किया गया है। सीमावर्ती गांवो के समग्र विकास में सीमा में तैनात एसएसबी के कमांडेंट अनिल कुमार सिंह जिला प्रशासन से कदम से कदम मिलाकर विकास एवं रोजगार के साथ पलायन रोकने के काम करने के लिए काफी उत्सुक हैं।
जिला प्रशासन द्वारा 80 किलोमीटर लंबी सीमा में लगे 11 गांव को केंद्र बिंदु बनाकर वहां का समग्र विकास करने के लिए आज विभिन्न विभागों के अधिकारियों की अलग अलग टीमें भेजी गई हुई है। इन गांव में मडुवा, पासम, तरकुली, आमनी, पोलप, तामली, चूका, कोहली कुमारी, नायक गोठ,सैलानी गोठ,देवीपुर शामिल है। इन गांव की अपनी अलग-अलग विशेषताएं हैं जहां मौनपालन, मुर्गी पालन, फलोंउत्पादन, मत्स्य पालन आदि कार्यक्रमों को समान रूप से संचालित किया जा सकता हैं।
आज चूका गांव के सर्वे के लिए एआर र्कोप्रेटिव सुभाष गहतोड़ी के नेतृत्व में जा रही टीम की राह बाटलागाड़ में हुऐ भूस्खलन ने रोक दी। वहां पहले से ही आपदा ग्रस्त क्षेत्रों के दौरे में निकले, डीएम मनीष कुमार ने खतरे को देखते हुए पूरी टीम को आगे जाने से रोक दिया। जिसके बाद टीम धूरा गांव में अदरक के बीज के उत्पादन को लेकर वहां सर्वेक्षण करने में जुट गए। डीएम का मानना है कि मुख्यमंत्री जी द्वारा पूर्णागिरि मेले को वर्ष भर संचालित करने की घोषणा के साथ जहां जिला प्रशासन अवस्थापना विकास में लग गया है। वहीं पूर्णागिरि के ऊपरी व निचले ढाल में बसे गांव में वहां की परिस्थितियों को देखते हुए ऐसे सभी उत्पाद पैदा किए जाएंगे जिसकी सारी खपत ही मेले में हो जाएगी। इससे किसानों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य मिल सकेगा। यहां पैदा होने वाला जैविक शहद को यहां की “सौगात” बनाया जाएगा। मुर्गी के चूजों से लेकर, फल पौधों, आलू, अदरक , हल्दी, आदि अन्य प्रकार के पौधों की नर्सरींयां व बीज जिले में ही पैदा किए जाएंगे। जिसके लिए आज तक बाहरी जिलों में जाना पड़ता था। गांवों से पलायन रोककर, पलायन कर चुके लोगों को उनकी माटी से जोड़ने के लिए मुख्यमंत्री पलायन रोकने की योजना बड़ा सहारा बनने जा रही है। डीएम का मानना है कि आज बाहर से लोग पहाड़ की शांत वादियों में जीवन बिताने के लिए लालायित हैं और यहां के लोग घर बार छोड़कर मैदानो में भीड़ का हिस्सा बन रहे हैं। इस पर जिला प्रशासन गंभीरता से चिंतन, मनन एवं विचार कर रहा है।